Tuesday, February 06, 2007

ध्यान

तुममें से जिनको सुभीता हो, वे साधना के लिए यदि एक स्वतंत्र कमरा रख सकें, तो अच्छा हो। इस कमरे को सोने के काम में न लाओ। इसे पवित्र रखो। बिना स्नान किये और शरीर-मन को बिना शुध्द किये इस कमरे में प्रवेश न करो। इस कमरे में सदा पुष्प और हृदय को आनन्द देनेवाले चित्र रखो। योगी के लिए ऐसे वातावरण में रहना बहुत उत्तम है। सुबह और शाम वहाँ धूप और चन्दन-चुर्ण आदि जलाओ। उस कमरे में किसी प्रकार का क्रोध, कलह और अपवित्र चिन्तन न किया जाय। तुम्हारे साथ जिनके भाव मिलते हैं, केवल उन्हींको उस कमरे में प्रवेश करने दो। ऐसा करने पर शीघ्र वह कमरा सत्त्वगुण से पूर्ण हो जायगा; यहाँ तक कि, जब किसी प्रकार का दुःख या संशय आये अथवा मन चंचल हो, तो उस समय उस कमरे में प्रवेश करते ही तुम्हारा मन शान्त हो जायगा। ...चारों ओर पवित्र चिन्तन के परमाणु सदा स्पन्दित होते रहने के कारण वह स्थान पवित्र ज्योति से भरा रहता है। ... संसार में पवित्र चिन्तन का एक स्रोत बहा दो।
( वि.सा.१/५६)

1 comment:

राजेश कुमार said...

क्षमा, आपने छट्ट त्योहार की जानकारी मांगी थी मैं समय पर नहीं दे सका क्योकि मैं छुट्टी पर था।